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फिर रचूँगा मैं / श्याम बिहारी श्यामल

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धार पर ओठँघकर
टेरूँगा ज़िंदगी
हँकाऊँगा बार-बार
परबत पर प्यार
गुनगुनाकर बनाऊँगा निर्धूम
हींड़-हाँड़कर छोड़ा हुआ आकाश

रचूँगा
मैं रचूँगा फिर
सूरज-चाँद से लैस कविता
नई, सुवासित
हरी-भरी और सुन्दर
फिर नए किनारे
फिर नया समुन्दर