भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फिर से देखना सीखो / बलदेव वंशी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:02, 12 मार्च 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बलदेव वंशी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह पहाड़ बहुत बड़ा है
यह कंकड़ बहुत छोटा

तुम धोखा खा गए हो !

पहाड़ तो केवल पहाड़ है
बड़ा या बहुत बड़ा नहीं
और कंकड़ भी महज कंकड़ है
छोटा या बहुत छोटा नहीं

सोचना छोड़ो ! केवल ! देखना सीखो अभी
पहाड़ और कंकड़ को
सिर्फ़ देखो । ठीक से देखना सीखो
पहले
इसे भावना में घुलाकर देखो
यह तुम्हें अपना पुरखा नज़र आएगा

सिर्फ़ सोचना नहीं
होना जानो
स्थूल तथ्य बिला जाएगा

अब पहाड़ के और कंकड़ के
सत्य को इतिहास को
पहचानो !

पहाड़ और कंकड़ ही नहीं
सारा जगत
अपना हो जाएगा !