भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फुटपाथ पर बैठ्यै बाप रा सुपना / जितेन्द्र सोनी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:51, 27 जून 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सड़क बिचाळै
फुटपाथ पर बैठ्यै
बाप रा सुपना
होग्या ईंट रा,
सिमटगी सोच
एक कमरै मांय।
एक कमरो बण्यां पाछै
नीं दिखै
कमरै रै बा'र स्यूं
फाट्योड़ा गाबां मांय
लगोलग जुवान होंवती
बीं री तीन छोरियां,
नीं दिखैला
बै सारा
पाणी स्यूं
पेट नै स्हारो देंवता।
छात अर भींतां
छुपा सकै
बां रा कई दुख,
ऐ बातां
कदै ई नीं जाणै
महलां मांय रैवण वाळा।
च्यार दीवारां अर
छात री कीमत
जाणै है
आसमान री छात तळै
फगत एक
बूढो बाप।