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फूल, तितली, कली, परी सी है / सुदेश कुमार मेहर
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फूल, तितली, कली, परी सी है
ज़िन्दगी, आपकी हँसी सी है
इस कदर यूँ घुली मिली सी है
मैं समंदर हूँ वो नदी सी है
ज़िक्र तेरा हुआ नहीं अब तक
इक इबादत कहीं रुकी सी है
उसका बातें बडी मुलायम है
उसकी आवाज़ मखमली सी है
पाँव ढकती नहीं कोई चादर,
बेबसी साथ लाजिमी सी है
कोई टांका लगा नहीं सकते,
ज़िन्दगी यूँ कटी फटी सी है
बांच लो आँखों के वो सन्नाटे,
बात उसकी कुछ अनकही सी है
वक़्त की धूप से नहीं बचती,
ज़िन्दगी ओस है जमी सी है
ढूंढती फिर रही कज़ा सबको,
ज़िन्दगी भी लुका छिपी सी है
ले लिए कमसिनी में चटखारे,
ये मुहब्बत भी अधपकी सी है