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फूल खिले है बगिया में / सरोजिनी कुलश्रेष्ठ

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जगो जगो ओ लालन मेरे
कितनी अच्छी धूप खिली
फूल खिले हैं बगिया में तो
गंध पवन घुली-मिली

रंग-बिरंगे फूलों जैसी
तितली भी उड़ती फिरती
बैठ रही फूलों पर आकर
गुपचुप बातें है करती

तुम भी उठकर खेलो बाहर
खेलो लुकाछिपी का खेल
हारो कभी, कभी तुम जीतो
ऐसा है जीवन का खेल