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फूली है मटर / देवेन्द्र कुमार

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फूली है मटर लाल-लाल
पियराई सरसों के बीच से
उठे कुछ
           नए सवाल।

गाँव है, सो खेती का
करनी, बसुली, पिलास
रामा का, खन्ती का
पूछती सुबह
बूढ़ी शाम से —
काकी कुछ है, आटा-दाल।

कहने को अलसी है
जो है इसी से है
मत काटो तुलसी है
          घर, आँगन घोड़े की पीठ पर
          तुम चलते कछुवे की चाल।

दिन तो आकाश चढ़ा
रात ही निरक्षर है
जाने क्या लिखा-पढ़ा
    मौसम से आए
    सब चले गए
    एक हमीं थे, जो —
          बने ढाल।