भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

फूलों का संसार / बाबूलाल शर्मा 'प्रेम'

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:16, 4 अक्टूबर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बाबूलाल शर्मा 'प्रेम' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बड़े सवेरे जब खिलते
बेला, गुलाब, कचनार,
मुझे बहुत प्यारा तब लगता
फूलों का संसार!

गेंदा, चंपा और चमेली
महकी-महकी हैं अलबेली,
आँगन में आ गई अचानक
आज बसंत बहार!

रंग-रंग के फूल खिले हैं
मुझसे तो सब हिले-मिले हैं,
फूलों की सारी बगिया है
अपना ही परिवार।

रंग घोलते, महक लुटाते
फूल हमेशा ही मुस्काते,
धूप ताप हो, चाहे वर्षा
पड़े मूसलाधार!