भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बकलेल / कैलाश झा ‘किंकर’

Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:25, 13 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश झा ‘किंकर’ |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हम्मर बेटा छै बकलेल।
पेट में खर नै सिंग में तेल॥

माय कहलकै-हेरे लाल
आने जल्दी आटा-दाल
दाल के पैसा वें बचाय केॅ
किनने छै गमकौआ तेल।

कथी लेॅ घर में सब्जी आनतै
ऊ पैसा के गुटका फाँकतै
पान चिबैने ठोर रँगैने
साथी सब में करै कुलेल।

दूध उठौना देलक छोड़ाय
ऊ पैसा धोबी घर जाय
आयरन करीकेॅ पेंट-सर्ट में
खेलै छै ऊ क्रिकेट खेल

बल्हों हम कनियाँ करी देलियै
जोड़तें-जोड़तें आब बुढ़ैलियै
पत्नी के फरमाइस छोड़ी केॅ
छुच्छे फुटानी साँझ-सबेर।