भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूमरें / लक्ष्मण मस्तुरिया

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:37, 28 अक्टूबर 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लक्ष्मण मस्तुरिया |संग्रह= }} {{KKCatGeet}}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ते का नाम लेबे संगी मोर
बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूमरें
ते का लानी देबे जोड़ी रे
डोंगरी के पाके चार लेजा लानी देबे

तैंहा, मैं आघु जमाना पछु रे
तैंहा, मैं आघु जमाना पछु रे
कोनों पाए नहीं बांधे ले
मया मा काबु का या ते का नामी लेबे

ते का लानी देबे जोड़ी रे
डोंगरी के पाके चार लेजा लानी देबे

मव्हा के गरती कोवा के फरती
मव्हा के गरती कोवा के फरती
फागुन लागे राजा मोर
आजाबे जल्दी रे लेजा लानी देबे

मया के बोली भरोसा भारी रे
तहूँ दगा देबे जोड़ी मोर
लगा लुहुं फांसी का या ते का नामी लेबे

ते का लानी देबे जोड़ी रे
डोंगरी के पाके चार लेजा लानी देबे

सुनव, जोड़ी कहे, लागे भगवान
गोरे गाल मा मैं गोदना
गोदाहूं तेरा नाम लेजा लानी देबे

बखरी के तुमा नार बरोबर मन झूमरें
डोंगरी के पाके चार लेजा लानी देबे