भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बचपन पहाड़ का / कविता भट्ट

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:56, 28 मार्च 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कविता भट्ट |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


ए.सी.में बैठ बनती हैं अधिकार-नीतियाँ
चर्चाएँ करती रहती हैं- बड़ी-बड़ी विभूतियाँ ।
बारिश-धूप में पलता है- बचपन पहाड़ का
पढ़ने को कोसों चलता है- बचपन पहाड़ का ।

शहरों में बोझे बस्तों के ही लगते हैं मुश्किल
यहाँ घास-पानी-गोबर भी है- बोझे में शामिल ।
पहाड़ी बर्फ़-सा गलता है- बचपन पहाड़ का
होटलों में बर्तन मलता है- बचपन पहाड़ का ।

इनको जरा निहारो तुम ओ बाबूजी ! करीब से
आँखें मिलाओ ,तो जरा किसी बच्चे गरीब से ।
गिरता है और सँभलता है- बचपन पहाड़ का
बस ठोकरों में ही पलता है- बचपन पहाड़ का।
  
सरकारें जपती रहती हैं- नित माला विकास की
कोई तो सुध ले पहाड़ी से इस ढलती आस की ।
पहाड़ी सूरज- सा उग-ढलता है बचपन पहाड़ का
पगडंडियों में गुम मिलता है- बचपन पहाड़ का ।