भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बढ़ गयी है के घट गयी दुनिया / राहत इन्दौरी

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:30, 9 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहत इन्दौरी }} Category:ग़ज़ल <poem> बढ़ ग...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बढ़ गयी है के घट गयी दुनिया
मेरे नक़्शे से कट गयी दुनिया '

तितलियों में समा गया मंज़र
मुट्ठियों में सिमट गयी दुनिया

अपने रस्ते बनाये खुद मैंने
मेरे रस्ते से हट गयी दुनिया

एक नागन का ज़हर है मुझमे
मुझको डस कर पलट गयी दुनिया

कितने खानों में बंट गए हम तुम
कितनी हिस्सों में बंट गयी दुनिया

जब भी दुनिया को छोड़ना चाहा
मुझसे आकर लिपट गयी दुनिया