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बदरा क्यों गरजे घनघोर सजनवाँ अइलें नाही मोर / महेन्द्र मिश्र
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बदरा क्यों गरजे घनघोर सजनवाँ अइलें नाही मोर।
कोयल कुहुके ऐ सखी, करे पपीहरा शोर।
झींगुर की झनकार है, बन में बोले मोर।
दम-दम दमकन लगे विजुरिया जियरा डरपन लागे मोर।
रैन अंधेरी होत है, गरजत है घनघोर।
बूँद पड़त अँगना सखी तरसत नैना मोर।
हरदम चाह लगी मिलने की अब तो चढ़ी जवानी जोर।
द्विज महेन्दर कइसे रहूँ करूँ कवन तदबीर।
कर काँपे लेखनी डिगे बहे नयन से नीर।
हरदम जपों नाम के माला मिल जा मोहन राज किशोर