भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बदले बदले मेरे सरकर नज़र आते हैं / शकील बदायूँनी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:30, 6 जून 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= शकील बदायूँनी }} {{KKCatGeet}} <poem> बदले बदले मेरे सरकर नज़…)
बदले बदले मेरे सरकर नज़र आते हैं ।
घर की बरबादी के आसार नज़र आते हैं ।
मेरे मालिक ने मुहब्बत का चलन छोड़ दिया
कर के बरबाद उम्मीदों का चमन छोड़ दिया
फूल भी अब तो ख़ार नज़र आते हैं
घर की बरबादी के ।
डूबे रहते थे मेरे प्यार में जो शाम-ओ-सहर
मेरे चेहरे से नहीं हटती थी कभी जिनकी नज़र
मेरी सूरत से ही बेज़ार नज़र आते हैं
घर की बरबादी के ।