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बने रहना / वीरू सोनकर

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कोई प्रलय अंतिम नहीं,
न ही कोई हार अभिशप्त है जीत में न बदल पाने को

सबसे बड़ी उम्मीद है
कि सबसे निर्मम के उत्थान के बाद भी,
कैसे उदित होता है सहजीवन के लिए दमकता एक सूर्य

हाँ, संकटो में सभी रास्ते धुंधला सकते हैं
और क्षमाभाव विलुप्त प्रायः हो सकता है
हो सकता है कि कविता किसी घिसे हथियार सी
तुम्हारे हाथो में हो,
मान सकता हूँ कि जीवन के सबसे बुरे दौर में भी तुम किसी तरह टिके हुए हो

तो यह सोच कर तुम बने रहना
समय की चाक पर किसी उम्मीद की तरह हथियार घिसना
और
पहचानना, मिटटी पर पड़ती धूप का रंग,
सीखना, खुद की परछाइयों से संवाद की कला
समझना, हवाओ के पृथ्वी भर का चक्कर लगाने की प्रवृत्ति

सबसे बड़ी उम्मीद है
कि बचे रहने की जुगत तुम्हे चीटियाँ बता देंगी
फिर तुम प्रलय पूर्व की आंधियों में यह सोच कर निश्चिन्त होना
और बने रहना,
कि यह किसी नए प्रारम्भ की आहट है!