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बन्धन-मोक्ष / राजकमल चौधरी

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आरम्भिक धारणा:

मानि लिअ, एकटा वृत्त थिक परिवार
पिता सूर्य्य छथि, पृथ्वी जकाँ परिक्रमा करइ छथि सतमाय
पत्नी छथि शशि, सूर्य्यसँ ज्योतित
पृथ्वीक चतुर्दिक परिधि-जकाँ बनबइत...
मुदा, ज्यामितिक सूत्र नइँ थीक हमर जीवन
किएक मानि ली हम सूत्रात्मकताक बन्धन (?)
कथापि नइँ छी हम मात्र बिन्दु वा सरलरेखा

माध्यमिक परिस्थिति:

एहि पार पिंजरासँ मुक्त विहग जकाँ हम
मध्यमे ड्योढ़ीक विशाल, जर्जर केबाड़
ओहि पार अश्वत्थक वृद्ध वृक्ष सन पिता
आ दू टा भावुकमना नारी
माय, जे हमरा गर्भमे धारण नइँ कएलनि
पत्नी, जे वहन कएलनि नइँ हमर सिनेह
आ, उदास-उदास थाकल सन तीन जोड़ आँखि
बेघइत दृष्टिबाण-
इएह थिक अहाँक गृह
इएह थिक अहाँक भविष्य, वर्त्तमान, भूत
इएह थिक अहाँक स्वर्ग, नरक, मर्त्य
इएह थिक अहाँक दिवस, निशि, प्रभात
जुनि बनू पुत्र, अहाँ गौतम सिद्धार्थ
नइँ पूरल छनि एखन यशोधराक आशा
कतए अछि राहुल?
आ हम?-बनल छी विराट विकल विद्रोह
हमरा लेल टटि गेल अछि घरक देबाल
हमरा लेल नइँए कोनो गृह, कोनो परिवार...
भरि दिन, भरि राति आँगनमे
प्रदक्षिणा रहल करैत सौंसे विश्व:

तिब्बतक रहस्यमय प्राचीन मन्दिर: धर्म
मानसरोवरक श्वेततनु हंस: सौंदर्य
ताजमहलक गोल-गोल गुम्बद: कला
काहिराक कदलिजंघा नर्तकी; वासना
पेरिसक महाकाय ओपेरा: विलास
रूसक मास्को-विश्वविद्यालय: ज्ञान
कश्मीरक अपरिचिता सुन्दरी: प्रेम

सभ वस्तु अही आँगनमे गयलक स्वागत-गीत
तदुपरान्त वायुमे बिला गेल, हेरा गेल
धधकइत रहल ज्वालामुख हमरा सभक अन्तर
मुदा चेहरा पर शून्यक आवरण, मौनक परदा...

अन्तिम विद्रोह:

दउगइ छी हम सभ केवाड़-पारक ध्वनिक दिस
द्रुतगतिएँ तेआगि क’ पुरना सभ व्यवस्था
अव्यवस्थित पंक्ति बना, जुलस लगा कए
मुदा, एक दोसरासँ पूर्णतः अपरिचित रहि

हे अपरिचित पिता, हे अनचिन्हार माय
हे अज्ञात पत्नी
के छी अहाँ सभ? हमरासँ अछि की समबन्ध?
आ कतए छी हम? आबि गेल छी कोन गाम?
कोना स्थगित कए दी हम अपन महायात्रा
के रोकत, के बान्हत, के गनाओत?
चक्रव्यूहमे मरि गेल अछि अभिमन्यु
कनइत रहू हे अर्जुन, हे द्रौपदी, कोनो लाभ नइँ
चीत्कार करू हे उत्तरा
ने अहाँ जमदग्नि छी, ने हम परशुराम
ने अहाँ कुन्ती छी, ने हम कर्ण
ने अहाँ सावित्री छी, ने हम सत्यवान।