Last modified on 21 अगस्त 2013, at 16:01

बयान सफाई / शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी

सशुल्क योगदानकर्ता २ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:01, 21 अगस्त 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शम्सुर्रहमान फ़ारूक़ी |संग्रह= }} {...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

रात उतरती गई
मुझ को ख़बर ही न थी

काग़ज़-ए-बे-रंग में सर्द-हवस-जंग में
सुब्ह से मसरूफ़ लोग अपनी चादर में बंद

आँख खटकती नहीं
दिल पे बरसती नहीं

ख़ुश्क-हँसी बे-नमक़ शहर फ़ज़ा में बुलंद
तंग-गली की हवा

शाम को चूहों की दौड़
तेज़-क़दम गुर्ब-ए-शाह जहाँ कब झपट लेगी किसे

क्या पता
नींद का ऊँचा मकाँ रौशनियों से सजा

हम सब की खिड़कियाँ दरवाज़े बंद हैं
घर की छतें आहनी

घर की हिफ़ाज़त करो घर की हिफ़ाज़त करो
रात उतरती रहे हम को दिखाई न दे

हम प हवा इल्ज़ाम क्यूँ