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बस इक निगाह से दिल का मेरे क़रार गया / अमित गोस्वामी

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बस इक निगाह से दिल का मेरे क़रार गया
न आज तक तेरी आँखों का फिर ख़ुमार गया

फिर एक रात, बदन छीलता रहा बिस्तर
फिर इक पहाड़ सा दिन सर्फ़−ए−इंतज़ार1 गया

भुला गया मुझे बरसों के रतजगे देकर
वो मेरे साथ जो दो चार पल गुज़ार गया

उसी के हाथ में अब मेरी सब लकीरें हैं
मेरे ही हाथ से ख़ुद अपना इख़्तियार गया

मैं अपने माज़ी2 से लड़ता रहा हूँ मुद्दत से
बस उससे जीत के निकला, कि तुझसे हार गया


1. इंतज़ार में ख़र्च 2. अतीत