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बस एक वचन / मृदुला शुक्ला

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जब तुम मुझसे कर रहे थे प्रणय निवेदन
तुम्हारी गर्म हथेलियों के बीच
कंपकंपा रहा था मेरा दायाँ हाथ
उसी वक़्त, तुम्हारे कमरे की दीवार पर
मेरे सामने टंगी थी एक तस्वीर
जिसमे एक जवान औरत पीस रही थी चक्की
और बूढ़ी औरत दे रही थी चक्की के बीच दाने
पास ही आधा पड़ा खाली मटका
उन्हें उनकी अगली लड़ाई की याद दिला रहा था
उसी तस्वीर में एक जवान आदमी दीवार से सर टिका
गुडगुडा रहा था हुक्का
एक बूढा वही बैठा बजा रहा था सारंगी

मुझे स्वीकार है तुम्हारा प्रणय निवेदन
बिना सात फेरों के बिना सातों वचन के !
बस एक वचन कि
जब मेरा बेटा कर रहा हो प्रणय निवेदन अपनी सहचरी से
तो उसके पीछे दीवार पर टंगी तस्वीर में
बूढ़ी औरत बजा रही हो सारंगी
बूढ़ा गुडगुडा रहा हो हुक्का
और जवान औरत और आदमी
मिल कर चला रहा हो चक्की
सुनो ! क्या तुम मेरे लिए,
बदल सकते हो दीवार पर टंगी इस तस्वीर के पत्रों की जगह भी?