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बस और नहीं रूढ़ोक्तियाँ / ओक्तावियो पास

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दिव्य चेहरा
जो गुलबहार जैसे खोल देता है अपनी पंखुड़ियाँ सूरज की ओर
वैसे ही तुम खोल देती हो
अपना चेहरा मेरी ओर जब मैं पन्ना पलटता हूँ ।

मोहक मुस्कान
कोई भी आदमी हो सकता है तुम्हारे जादू में गिरफ़्तार,
ओ पत्रिका की सुंदरी ।

कितनी कविताएँ लिखी गयी हैं तुम्हारे लिए ?
कितने दाँते तुम्हें पत्र लिख चुके हैं, बेआत्रीस ?
तुम्हारी सम्मोहनी माया को
तुम्हारी निर्मित फंतासी को ।

मगर आज एक और रूढोक्ति के तहत
यह कविता मैं तुम्हारे लिए नहीं लिखूंगा.
नहीं. और रूढोक्तियाँ नहीं.

यह कविता समर्पित है उन स्त्रियों को
जिनका सौंदर्य है उनकी सौम्यता में,
उनकी बुद्धि में,
उनके चरित्र में
न कि उनके बनाये हुए रूप में ।

यह कविता तुम्हारे लिए है
तुम जो शहरज़ाद की तरह
रोज़ उठती हो एक नई कहानी के साथ,
कहानी जो गाती है बदलाव का गीत
जो करती है संघर्ष की उम्मीद
संघर्ष दो देहों के एक होने के प्रेम के लिए
संघर्ष नए दिन के संग जागे नए आवेशों के लिए
संघर्ष उपेक्षित अधिकारों के लिए
या संघर्ष केवल एक और रात जीवित रहने के लिए ।

हाँ, यह तुम्हारे लिए है,
तुम जो जीती हो दुःख की दुनिया में
तुम जो हो हर पल नष्ट होते ब्रह्माण्ड का चमकता सितारा,
तुम जो हो एक-हज़ार-एक लड़ाइयों की योद्धा,
तुम्हारे लिए, मेरे मन की मीत ।

अब से, मेरा सिर झुक कर नहीं देखेगा कोई पत्रिका,
बल्कि उठ कर निहारेगा रात को,
और उसके चमकते सितारों को,
तो अब और रूढोक्तियाँ नहीं ।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : रीनू तलवाड़