भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बसंत बहार / कोदूराम दलित

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:34, 19 सितम्बर 2013 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हेमंत गइस जाड़ा भागिस, आइस सुख के दाता बसंत
जइसे सब-ला सुख देये बर आ जाथे कोन्हो साधु-संत ।

बड़ गुनकारी अब पवन चले, चिटको न जियानय जाड़ घाम
ये ऋतु-माँ सुख पाथयं अघात, मनखे अउ पशु-पंछी तमाम ।

जम्मो नदिया-नरवा मन के, पानी होगे निच्चट फरियर
अउ होगे सब रुख-राई के, डारा -पाना हरियर-हरियर ।

चंदा मामा बाँटयं चाँदी अउ सुरुज नरायन देय सोन
इनकर साहीं पर-उपकारी, तुम ही बताव अउ हवय कोन ?

बन,बाग,बगइचा लहलहायं, झूमय अमराई-फुलवारी
भांटा, भाजी, मुरई, मिरचा-मा, भरे हवय मरार-बारी ।

बड़ सुग्घर फूले लगिन फूल, महकत हें-मन-ला मोहत हें
मंदरस के माँछी रस ले के, छाता-मा अपन संजोवत हें ।

सरसों ओढिस पींयर चुनरी, झुमका-झमकाये हवयं चार
लपटे-पोटारे रुख मन-ला, ये लता-नार करथयं दुलार ।

मउरे-मउरे आमा रुख-मन , दीखयं अइसे दुलहा -डउका
कुलकय, फुदकय, नाचय, गावय, कोयली गीत ठउका-ठउका ।

बन के परसा मन बाँधे हें, बड़ सुग्घर केसरिया फेंटा
फेंटा- मा कलगी खोंचे हें, दीखत हें राजा के बेटा ।

मोती कस टपकयं महुआ मन, बनवासी बिनत-बटोरत हें
बेंदरा साहीं चढ़ के रुख-मा गेदराये तेंदू टोरत हें ।

मुनगा फरगे, बोइर झरगे, पाकिस अँवरा, झर गईस जाम
"फरई-झरई, बरई-बुतई" जग में ये होते रथे काम ।

लुवई-मिंजई सब्बो हो गे अउ धान धरागे कोठी-मा
बपुरा कमिया राजी रहिथयं, बासी- मा अउर लंगोटी-मा ।

अब कहूँ, चना, अरसी, मसूर के भर्री अड़बड़ चमकत हें
बड़ नीक चंदैनी रात लगय डहँकी बस्ती-मा झमकत हें ।

ढोलक बजायं, दादरा गायं, गायं ठेलहा-मा दाई-माई मन
ठट्ठा, गम्मत अउ काम-बुता, सब करयं ननद-भउजाई मन ।

कोन्हों मन खेत जायं अउ बटुरा-फली लायं भर के झोरा
अउ कोन्हों लायं गदेली गहूँ-चना भूँजे खातिर होरा ।

अब चेलिक-मोटियारिन मन के,खेले-खाए के दिन आइस
डंडा - फुगड़ी अउ रिलो-फाग , नाचे-गाये के दिन आइस ।

गुन, गुन, गुन, गुन करके भउंरा मन, गुन बसंत के गात हवयं
अउ रटयं 'राम-धुन' सूवा मन, कठखोलवा ताल बजात हवयं ।

कवि मन के घलो कलम चलगे, बिन लोहा के नाँगर साहीं,
अउहा -तउहा लिख डारत हें, जे मन में भाय कुछू कांही ।

होले तिहार अब त हवय, हम एक रंग रंग जाबो जी,
"हम एक हवन, हम नेक हवन" दुनिया ला आज बताबो जी ।

एकर कतेक गुन गाई हम, ये ऋतु के महिमा हे अनंत
आथय सबके जिनगानी-मा, गर्मी, बरखा, जाड़ा, बसंत ।