Last modified on 27 दिसम्बर 2019, at 14:03

बसन्ती भोर / मुनेश्वर ‘शमन’

सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:03, 27 दिसम्बर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुनेश्वर 'शमन' |अनुवादक= |संग्रह=सप...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

पेन्ह के किरिनियाके चुनरी लगनउती।
भोर ई बसन्ती लगय कनिया बिहउती।।

संगेसंग पवनमा के अंगे-अंग नाचय।
चप्पा-चप्पा सुन्नरता अपन साज साजय।
रितु खोल देलक हे झाँपल-तोपल पाँउती।।

 ओठधल दुअरिया पर साँझ रे सियानी।
गदरल जाहइ धीरे-धीरे एकर तो जुआनी।
चाँदनिया सलोनी देवे लगल हे सँझउती।।

भुलल-बिसरल इयाद अचानक जी में जागय।
नेहिया भींजल मनवाँ मनइले से कब मानय।
रोजे-रोजे आसऽ माँगय मेल के मनउती।।