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बसा कर प्रीत उर पावन / अनुराधा पाण्डेय

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बसा कर प्रीत उर पावन, गढे कुछ ग्रंथ परिमल-से।
रचे रख सामने तेरे, युगल वे नैन निश्छल-से।
कभी एकांत में लेकिन, अगर मैं पृष्ठ पलटाती
निशा स्तब्ध हो जाती, दिवस अभिशप्त विह्वल-से।