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बसी है मेरे भीतर कोई कुब्जा / शिव ओम अम्बर

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बसी है मेरे भीतर कोई कुब्जा,
तरन-तारन कन्हाई चाहता हूँ

पड़े थे जो सुदामा के पगों में,
वो छाले वो बिवाई चाहता हूँ।

सभा में गूँजती हों तालियाँ जब,
सभागृह से विदाई चाहता हूँ।