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बहते दरिया में किसी दिन वो बहा देगा मुझे / सूफ़ी सुरेन्द्र चतुर्वेदी

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बहते दरिया में किसी दिन वो बहा देगा मुझे ।
रेत पर इस बार भी लिख कर मिटा देगा मुझे ।

ग़म, जुदाई, अश्क़, तोहमत, बेबसी देने के बाद,
मैं भी देखूँ ये मुक़द्दर और क्या देगा मुझे ।

जिसकी ख़ातिर मैंने गिरवी रक्खी थीं खुद्दरियाँ,
क्या ख़बर थी वो भी नज़रों से गिरा देगा मुझे ।

रेत में तब्दील कर डाला मुझे उस शख़्स ने,
कह रहा था जो कभी दरिया बना देगा मुझे ।

इस बदन में क़ैद हूँ मैं एक पंछी की तरह,
एक दिन लम्हा कोई आकर उड़ा देगा मुझे ।

फ़ासलों से मिल रहा है इससे तो लगता है ये,
वो जुदाई की बहुत लम्बी सज़ा देगा मुझे ।

अपनी ग़ज़लों में तुझे ज़िन्दा करूँगा देखना,
इन दुआओं में असर जिस दिन ख़ुदा देगा मुझे ।