भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बादलों का ज़ोर है, बरसात है / गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल'
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:32, 8 जुलाई 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गोपाल कृष्ण शर्मा 'मृदुल' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बादलों का ज़ोर है, बरसात है।
नाचता मन मोर है, बरसात है।।
झींगुरी आवाज पर चर्चा हुई,
क्रान्ति का यह शोर है, बरसात है।।
हम यहाँ जलते-तड़पते, वे वहाँ,
नेह की यह डोर है, बरसात है।।
घुप अँधेरा हर तरफ फैला हुआ,
डर रहा मन, चोर है, बरसात है।।
बिजलियाँ किस पर गिरेंगी क्या पता
खौफ़ अब हर ओर है, बरसात है।।