भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बापू की चिट्ठी / उर्मिल सत्यभूषण

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:58, 22 अक्टूबर 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उर्मिल सत्यभूषण |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बाबा की चिट्ठी बब्बन के नाम
बच्चों को प्यार अम्मा को राम राम
कल गाँव के पुत्तु ने दी थी खबरिया
कांपा था जियरा भीगी नज़रिया
ठाकुर राजा ने तेरे तोड़ दिये पांव
बिजुरी करैंट दिया चोरी इल्ज़ाम
कैसे हुआ ये रे तूने कुछ बोला होगा
किसी बड़े के आगे तूने मुँह खोला होगा
वो तो हैं राजा जी! हम हैं गुलाम
देश की आज़ादी से हमको क्या काम
याद नहीं कैसे उसने मुझको पिटवाया था?
तूने चोरी से मुझे दिल्ली पहुँचाया था
छूट गये संगी साथी, गली, द्वारे गाँव
पर अफसोस नांही-अब है आराम
जवान खून तेरा, आग तो लगती होगी
बदले की हवस तेरे मन में भड़कती होगी
पर बागी न होना मेरे बचवा! मेरे राम।
मर जायेंगे हम, कुल होगा बदनाम
बहू का जापा है, रज्जो का गौना है
तेरे बिना बेटा कुछ भी न होना है
रज्जन के ससुरे ने भेजा पैग़ाम
देखो! हमारी इज्जत हो न नीलाम
करो जुगाड़ कुछ दिल्ली चले आओ
बहू को बच्चों को, अम्मा को ले आओ
झोंपड़ी अपनी है मिल जायेगा काम
छोड़ो बंधक का जुल्मी मुकाम।