भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बापू के हत्‍या के चालिस दिन बाद गया / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:05, 7 नवम्बर 2014 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बापू के हत्‍या के चालिस दिन बाद गया
मैं दिल्‍ली को, देखने गया उस थल को भी
जिस पर बापू जी गोली खाकर सोख गए,
जो रँग उठा
उनके लोहू
की लाली से।

बिरला-घर के बाएँ को है है वह लॉन हरा,
प्रार्थना सभा जिस पर बापू की होती थी,
थी एक ओर छोटी सी वेदिका बनी,
जिस पर थे गहरे
लाल रंग के
फूल चढ़े।

उस हरे लॉन के बीच देख उन फूलों को
ऐसा लगता था जैसे बापू का लोहू
अब भी पृथ्‍वी
के ऊपर
ताज़ा ताज़ा है!

सुन पड़े धड़ाके तीन मुझे फिर गोली के
काँपने लगे पाँवों के नीचे की धरती,
फिर पीड़ा के स्‍वर में फूटा 'हे राम' शब्‍द,
चीरता हुआ विद्युत सा नभ के स्‍तर पर स्‍तर
कर ध्‍वनित-प्रतिध्‍वनित दिक्-दिगंत बार-बार
मेरे अंतर में पैठ मुझे सालने लगा!......