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बार ही बारे विनवूं, गरवे से बाबुल / मालवी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बार ही बारे विनवूं, गरवे से बाबुल
कातिक लगिन लिखाव हो
आला-लीला बांस कटाव
नागर बेल मंडवा छवाव
सुलतान दूले, रामदूले आनि बाजिया वे
हातीड़ा हठसाल बांदो, घोड़ी ला घुड़साल बांदो
बराती खे देवो जनिवास, साजन-समधी सास सेरी
जवाली अनपोय लाया, तिमन्यो अनपोय लाया
नाड़ा को रंग बदरंग
बाबुल उनखे बांध दीजो
गजरा अनगूंथ लाया, रेणी अनरंग लाया
दुपट्टा को रंग भदरंग
काकुल उनखे बांध दीजो
सुलतान दूले राम दूले रूस चलिया दे