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बारह बरस में री जोगी आयो रे / खड़ी बोली

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

मल्हार

बारह बरस में री जोगी आयो रे
अरे जोगी आये मैया के दरबार,
सुनो जी राजा भरथरी


भिक्षा को डारो री मैया तावली
अरी मैया कब से खड़ें हैं तेरे द्वार
सुनो जी राजा भरथरी


भिक्षा तो डारति मैया रो पड़ी
अरे जोगी तेरी सूरति को मेरो लाल
सुनो जी राजा भरथरी


तू तो री मैया मेरी बावली
अरी मैया मेरी सूरति को कोई और
सुनो जी राजा भरथरी


बारह बरस में री जोगी आयो रे
अरे जोगी आये बहना के दरबार,
सुनो जी राजा भरथरी


भिक्षा को डारो री बहना तावली
अरी बहना कब से खड़ें हैं तेरे द्वार
सुनो जी राजा भरथरी


भिक्षा तो डारति बहना रो पड़ी
अरे जोगी तेरी सूरति को मेरो भ्रात
सुनो जी राजा भरथरी


तू तो री बहना मेरी बावली
अरी बहना मेरी सूरति को कोई और
सुनो जी राजा भरथरी


बारह बरस में री जोगी आयो रे
अरे जोगी आये रानी के दरबार,
सुनो जी राजा भरथरी


भिक्षा को डारो री रानी तावली
अरी रानी कब से खड़ें हैं तेरे द्वार
सुनो जी राजा भरथरी


भिक्षा तो डारति रानी रो पड़ी
अरे जोगी तेरी सूरति के मेरे कंत
सुनो जी राजा भरथरी


तू तो री रानी मेरी बावली
अरी रानी मेरी सूरति को कोई और
सुनो जी राजा भरथरी