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बारिश-3 / पंकज राग

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दागदार थी बारिश
धूप मेम सूखकर भी रह गए कपड़ों पर दाग
ज़मीन पर भी रह गए धब्बे
कुछ ज़मीनों पर घास निकलने में
कितना वक़्त लेगी यह बताना मुश्किल होता है
तब तक रहना होगा इन धब्बों के बीच
रह गई हर चीज़ के साथ रहना होता है
चाहे वह ठोस हो या रिसती हुई
पीना पड़ता है दागों को भी
रह गए पानी की तरह
निरंकुश सत्ता का इतिहास हमेशा वज़नी होता है
बारिश के अट्टहास की तरह