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बाल कविताएँ / भाग 6 / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'

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जब खेलने आये बच्चे
जब खेलने आए बच्चे-

हवा चली जी, हवा चली

तेज चली जी, तेज चली

टूटे पत्ते, छूटे पत्ते ।

बिखरे पत्ते, पत्ते –पत्ते

पत्ते दौड़े, आगे-आगे

पीछे –पीछे, हम भी दौड़े

कभी इधर को, कभी उधर को

नहीं पकड़ में, वे आ पाए

हम भी हारे, वे भी हारे ।

आए पास में चुपके-चुपके

अब पकड़ में आए पत्ते;

सबने सभी उठाए पत्ते ।


हरी पत्तियाँ
हरी–हरी पत्तियाँ ।

खूब छाँव से भरी पत्तियाँ ॥

एक पत्ती टूट गई ।

छाँव झटपट रूठ गई ॥


अक्कड़-बक्कड़
अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो

आसमान में बादल सौ ।

सौ बादल हैं प्यारे

रंग हैं जिनके न्यारे ।


हर बादल की भेड़ें सौ

हर भेड़ के रंग हैं दो ।

भेड़ें दौड़ लगाती हैं

नहीं पकड़ में आती हैं ।


बादल थककर चूर हुआ

रोने को मज़बूर हुआ ।

आँसू धरती पर आए

नन्हें पौधे हरषाए ।