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बालकनी में आँगन बदले / शर्मिष्ठा पाण्डेय

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बालकनी में आँगन बदले
जंगल सिमटे गमलों में
बँसवारी की दुखती गर्दन
महलों और दुमह्लों में

बंटीं ज़मीनें चकबंदी में
नहरें कट गयीं नह्लों में
चाचे-ताऊ लुप्त हो चले
परधानी के हमलों में

 चौखट-चारदीवारी उखड़ी
पटीदारी के घपलों में
बंधीं पारियां चौके भीतर
तानों वाले जुमलों में

चौहद्दी की पैमाइश पर
जामुन झांकें बगलों में
बाप मिलकियत हड़पे बैठा
बेटा गिन गया कंगलों में

गायें-बहुवें खूँटें बांधीं
श्वान सजें कर-कमलों में
देख खुलासा शपा गाँव का
शहर हंसेगा पल्लों में