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बाहर-भीतर / अज्ञेय
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बाहर सब ओर तुम्हारी/स्वच्छ उजली मुक्त सुषमा फैली है
भीतर पर मेरी यह चित्त-गुहा/कितनी मैली-कुचैली है।
स्रष्टा मेरे, तुम्हारे हाथ में तुला है, और/ध्यान में मैं हूँ, मेरा भविष्य है,
जब कि मेरे हाथ में भी, ध्यान में भी, थैली है!