भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बिरखा / संजय पुरोहित

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:50, 25 जून 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आभै रै आंगणैं
पळकतो चांदो
रंगोळी मांडता तारा
लुकमीचणी खेलती बीजळी
बायरियो खिंदांवतो
छांट्यां रो कागद
उडीकतो बीज मुळक्यो
धोरी हरख्यो
रेत में न्हावंती चिड़कली
दीन्हौा बिरखा नै सामेळो
बादळ कड़कड़ाया-गाज्या
धाप‘र बरस्या
मुरधर पचायली छांट्यां
काढ्या बिरवा
हुयौ धान खेतां में
बसगी मौज
गांव घाली घूमर
घर उमाव में नाच्या।

मुरधर में
जूण री आस बधगी
जमारै री आस पळगी
रूठो भलै राज मोकळो
कदै ई ना रूठै राम
क्यूं फ़ेर चिड़ी
दाणा नै तरसै
जे इन्धर धाप-धाप
लगोलग बरसै !