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बिल्डर ऐसे आते हैं / संजय कुंदन

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बिल्डर आते बड़ी-बड़ी मशीनों
बैनरों और पोस्टरों के साथ
वे आते और शहर का एक मैदान
रातोंरात घिर जाता दीवार से
सड़क किनारे खड़ा होने लगता
मिट्टी का पहाड़
कुछ रंगीन छातों के नीचे बैठे जाते उनके कारिंदे

रात भर खुदाई करती उनकी मशीन
ठक् ठक् ठक् ठक्
करती हमारी नींद में भी सूराख

हमारे सपनों की दरारों में घुसे चले आते हैं बिल्डर
मोबाइल पर भेजते संदेश पर संदेश
अखबारों में डालते रहते पर्चियां
करते रहते पीछा निरंतर
टीवी खोलते ही दिखती एक अभिनेत्री
अपील करती हुई उनकी तरफ से
एक क्रिकेट खिलाड़ी बताता कि
सुख की कुंजी तो एक बिल्डर के पास ही है
यहां तक कि
लाल किले की प्राचीर से
घोषणा की जाती कि
बिल्डरों के बूते ही चल रही है
देश की अर्थव्यवस्था
बिल्डर आते
और बदल जाता शहर का भूगोल
उनकी नई बहुमंजिली इमारतों के आगे
बेहद जर्जर लगने लगते पुराने छोटे मकान
जैसे शर्म से धंस जाना चाहते हों
कुछ पुराने बाशिंदें भी अचानक
बहुत पुराने लगने लगते
उन्हें शक हो उठता कि शायद उन्हें
शहर में बसना अब तक नहीं आया
वे फिर कभी दिखाई नहीं देते ।