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बीज के स्वप्न / मृदुला सिंह

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इन दिनों सरगुजिहा माटी में
खिलते हैं सुंदर आसमानी फूल
जिनकी उनमुक्त हंसी
बिखर गई है
यहाँ की कच्ची पक्की सड़को पर

इन बीज से फूटे नवांकुरों की
मुट्ठियो में
भरे हैं चमकीले सपने
जो इनके बढ़ते कदमो के साथ
सच के करीब होते जाते हैं

कल इनका ही है
नन्हे हाथों ने थाम ली हैं कलम
अपनी इबारत लिखने को
बस्ते की किताबें मुस्कुराती हैं
खुशी से भागते इनके
मिट्टी सने कदमों की आहट सुनकर

वे मुखातिब हैं स्कूल को
और जून की तपिश में
नरम हो रही जिंदगी की जमीन
अँकुआएँगे ये नन्हे बीज
जुलाई उर्वर हो उठेगा
बूंदों की सजेंगी लड़ियाँ
गमकती धरती करेगी प्रार्थना
अक्षर सीख, समझ, बढ जायँ
बची रहे इनकी
सुबह-सी निर्मल हंसी

और बचा रहे आंखों का पानी
मक्कारियों के पाठ से रहें अनजान
लग न पाए इनके सपनो में सेंध
सहेजे लें अपने अधिकार की जमीन
ये इस माटी के बीज हैं
इन्हें उगना होगा
ताकि हरी रहे
सरगुजा की माटी