भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुढ़ापा आने तक / चन्द्र प्रकाश श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:43, 14 जनवरी 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

उसने जाना
घर की सांकल खटखटाती
दुकानों की मंशा को

उसने पहचाना
पैकेटों-ठण्डी बोतलों में बंद
ज़हरीली गंध को

समझा उसने
सिक्कों की खनखनाहट में छिपे
ध्वनि- संकेतों को

आखिर भॉंप ही लिया उसने
चकाचौंध कर देने वाली
रोशनियों का मर्म

लेकिन....
तब तक वह
बूढ़ा हो चला था