भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुलबुल तो बहुत हैं गुल-ए-राना नहीं कोई / लाला माधव राम 'जौहर'

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ३ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:29, 12 दिसम्बर 2014 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाला माधव राम 'जौहर' |संग्रह= }} {{KKCatGhaza...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बुलबुल तो बहुत हैं गुल-ए-राना नहीं कोई
बीमार हज़ारों हैं मसीहा नहीं कोई

काम आए बुरे वक़्त में ऐसा नहीं कोई
तुम क्या हो ज़माने में किसी का नहीं कोई

हम इश्क़ में हैं फ़र्द तो तुम हुस्न में यकता
हम सा भी नहीं एक जो तुम सा नहीं कोई

तुम क्या करो क़िस्मत ही अगर अपनी बुरी हो
तक़दीर के लिक्खे को मिटाता नहीं कोई