भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बुलावा / रतन सिंह ढिल्लों

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:53, 17 जनवरी 2011 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रतन सिंह ढिल्लों |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}} <poem> ग़र ! तूने म…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ग़र ! तूने मुझे बुलावा नहीं भेजा
तो इसका अफ़सोस
तुझे ही होगा
जब तू मुझे न बुलाने के बारे में
दोस्तों से झूठ बोलेगा
कि तूने मुझे क्यों नहीं बुलाया
इसलिए
मैं तेरे जश्न में आकर भी
तुझसे मिलना नहीं चाहता
क्योंकि, तेरी शर्मिंदगी
और तेरी बहानेबाज़ियाँ
मेरे प्यार का हिस्सा नहीं ।
 
मूल पंजाबी से अनुवाद : अर्जुन निराला