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बूँदें / सरोज सिंह

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स्नेह की परिधि में
तुम, मुझसे विमुख
किन्तु तुम्हारा मौन
मेरे सन्मुख रच देता है
स्नेह की परिभाषा
इस नेह को निहारता सूरज
समेट लेता है
अपनी तीक्ष्ण किरणें
और तुम...
बादलों के कान में
धीरे से कुछ कह कर
बन जाते हो आकाश
के तभी बूंदे बरसने लगतीं हैं
और मैं मिटटी सी गल कर
बन जाती हूँ धरती।