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बेईमानी का फल‌ / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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मिली नौकरी चूहे जी को,
बस के कंडेक्टर की|
लगे समझने बस को जैसे,
खेती हो वह घर की|

बस में बैठे सभी मुसाफिर,
उनसे टिकिट मंगाते|
पैसे तो वे सबसे लेते,
पर ना टिकिट बनाते|

पूछा लोगों ने भैयाजी
कैसी बेई मानी|
सरकारी पैसे से क्यों ये,
करते छेड़ाखानी|

बोला... टिकिट बनाता तो हूं,
तुम तक पहुंच न पाते|
कागज़ खाने की आदत से,
टिकिट हमीं खा जाते|

उत्तर सुन, लोगों ने पूछा,
नोट क्यों नहीं खाये|
लिये टिकिट के रुपये हैं तो,
उनको कहां छुपाये|

बगलें लगा झांकने चूहा,
छोड़ छाड़ बस भागा|
बिल्ली पीछे दौड़ पड़ी तो,
मारा गया अभागा|