भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

बेमौसम सूरजमुखी / ग्युण्टर ग्रास / उज्ज्वल भट्टाचार्य

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:10, 24 जुलाई 2019 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नवम्बर ने मारा उन्हें,
मायूस उजले के बीच काला ।
अभी तने हैं डण्ठल,
ताना देते इन रंगों का,
बारिश में कुछ टेढ़े से,
गर मिलती तुलना काश,
और छन्द भी,
मिसाल के लिए ईश्वर और लाश ।

अभी तक हैं वे मुनासिब,
नमूना ऐसा निराला,
तराशे गए आसमान से,
उसके बदनसीब ढँगों का
एक हिस्सा और धब्बे-सा बिल्कुल फैलकर,
सन्देश-सी लिखी हुई है एक ख़बर उसके ऊपर :

तलाक़ के बाद गुज़रता है
जो मर्द और औरत पर
कुछ ही अरसे में देश और
जनता का वही हुआ है हाल ।
फ़सल थी मामूली,
पर काफ़ी रहा लूट का माल ।

हाय, ट्रॉयहैण्ड<ref>पूर्वी जर्मनी के सार्वजनिक स्वामित्व वाले उन सरकारी उद्यमों को निजी हाथों में बेचने के लिए बनाई गई संस्था, जो कौड़ियों के मोल बेचे गए थे ।</ref> ने ढाया है
कहर हमारे ऊपर.
शक़ होने पर ही काटता
जो सूरजमुखी का सर,
मिलेंगे न गवाह उन्हें,
बलवे से होंगे बदहाल ।

मूल जर्मन से अनुवाद : उज्ज्वल भट्टाचार्य

शब्दार्थ
<references/>