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ब्रह्मकौंल / भाग 1 / गढ़वाली लोक-गाथा

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रभो, जौं<ref>जिन</ref> से गंगा पैदा होई,
सोई चरण सुमिरण करदौं।
जु चरण रैन नन्द का आंगण,
जु चरण रैन जसोदा की गोदी,
सोई चरण सुमिरण करदौं।
प्रभो, एक दां कृष्ण भगवान
द्वारिका मा बैठीक खेलणा छा पासो<ref>पांसा</ref>।
छुयौं<ref>बात</ref> पर छुई ऐन<ref>आयी</ref>, नारद जी न बोले;
हिमाचल कांठा<ref>चोटी</ref> मा जौलाताल
राजकुमारी रंदी तख एक मोतीमाला!
सोना का पासा छन वीं मू,
चाँदी की छन चौकी।
रूप की आछरी<ref>अप्सरा</ref> छ वा दिवा<ref>दीप</ref> जसी<ref>जैसी</ref> जोत,
रघुकुँठी घोड़ी साजी वैन<ref>उसने</ref>,
लाडलो बरमी पौंछे<ref>पहुँचा</ref> कृष्ण पास।
बोल बोल दिदा<ref>बड़ा भाई</ref>, क्या काम होलू मैकू?
तब बोलदा कृष्ण भगवान मन की बात-

त्वै<ref>तुम्हें</ref> जाणू होलू<ref>होगा</ref> बरमी हिंवचल काँठा,
सोना का पासा लौणन, चांदी कीचौकी!
जौलाताल रैंदा<ref>रहती है</ref> बल मोतीमाला,
जीतीक लौण भुला<ref>छोटा भाई</ref> मोतीमाला मैकू तई।
तब चलीगे बरमी हिंवचल काँठा,
सत होलू सत विमला रौतेली,
सत पीनी होली मैन सहस्त्रधारी ददी,
मेरी रगुकुँठी घोड़ी गगन चढ़यान।
तब गगन मा चढ़ीगे, अगास उड़ीगे,
रघुकुँठी घोड़ी वा वैकी।
पौछीगे बरमी हिंवचल कांठा!
जौलाताल मू वो नहेण लैगे।
तब जाँदीन चेली<ref>दासी</ref> पाणी भरण,
तब आई गए सौंली शारदा-
रूप की प्यासी छै वा मोतीमाला की दासी!
सौंली शारदा तब दृष्टि घुमौंदी,
देखीले तन लाडलो बरमी-
साँवली सूरत वैकी, मोहनी मूरत।
रौड़दी-दौडदी गै<ref>गयी</ref> बल सौंली शारदा,
मोतीमाला का त पास-
अंगूठी गैणुवा<ref>तारे</ref> जीं का, बाल काली बादुली<ref>बादल</ref>।
चीणा<ref>चीणा, चावल जैसी आवाज</ref> जसी चम<ref>चमकती</ref> फ्यूँली<ref>फ्यूंली,</ref> जसो फूल
नौण<ref>मक्खन</ref> सी लुटकी<ref>टिकिया</ref> हिंसर<ref>हींसर, एक फल</ref> सी गुन्दकी,
मोतीमाला होली बांदू<ref>सुन्दरी</ref> मां की बांद,
चांदू मा की चांद होली, कृष्ण त्वई लैख<ref>लायक</ref>।

रूप का रसिया छया कृष्ण, फूलू का हौंसिया<ref>शौकीन</ref>।
सीलो ज्यू<ref>मन</ref> भगवान को रसपैस<ref>पसीज</ref> गए,
पूछे ऊन एक एक करी सब ज्वान<ref>युवक</ref>,
पर वख जाणक कैन हुँगारो<ref>हाँ</ref> नी भरे।
तब रगड़े कृष्णन बदन अपणो,
पैदा होई गए कनी भौंरों की टोली।
भेजीन तब भौंरा हिवंचल काँठा,
ब्रह्मकोट रंदो छयो लाडलो ब्रह्मकौंल।
बथौं सी उड़ीन भौंरा, अगास चढ़ीन,
घूमदा घूमदा गैन ब्रह्मकौंल का भौन।
बठीन वो देणी भुजा मा बरमी की,
जाणीयाले तब वैन बड़ा भाई को रैबार<ref>संदेश</ref> आयो।
तब तैयार होन्दू द्वारिका जाणक,
हे मेरी जिया<ref>माँ</ref> विमला सहस्त्रधारी,
मैंन जाण द्वारिका, मैं कू आयूं हुकम छ!
नि जाणू बेटा, दखिण द्वारिका,
वीं रतन द्वारिका रंदो कालो नाग।
लाडला बरमीन बल एक नी माणी,
मरण वचण जिया, मैन द्वारिका जाण।
सुण सुण मोती, पीफल चौरी<ref>चबूतरा</ref> देख,
सौंली<ref>साँवली, सुंदर</ref> सूरत कू कुई चौरी मू बैठ्यूँ छ।
रतन्याली<ref>लाल</ref> आँखी छन वेकी, पतन्याली फिली<ref>जोड़, भुजा</ref>।
मोतीमाला तब देखी बरमी को रूप:
जा दू जा दू शारदा वै लाऊ बुलाई।
शारदा तब ऐगी बरमी का पास,
छेद<ref>कुरेद</ref> छेदी पूछदी तब वैसे बात।

मैं विमला को जायों<ref>बेटा</ref> छऊँ, जाति को जादव,
मिलण आयूँ मैं भाभी मोतीमाला।
मोतीमाला कन्या छ कुँवारी,
तीन सौ साठ राजा ऐन आज तैं,
कुछ हारी गैन, कुछ मान्या गैन।
बोल बोल बरमी, तेरी वा भाभी होई कनाई<ref>कैसे</ref>?
सौंली शारदा मुलकुल<ref>मंद-मंद</ref> हैंसण लैगे:
केकू<ref>क्यों</ref> आई होलू छोरा, वैरी का वदाण<ref>देश</ref>,
वैरी का वदाण आई, काल का डिल्याण।
फ्यूँली को फूल देखी वीं दया ऐगे।
तब बोलदी शारदाः जिया को लाडलो होलू तू,
अगास को गैणो होलू तू, कै दिल को फूल।
राणी मोतीमाला छ पांसा की शौकी,
तिन<ref>तुमने</ref> हारीक बरमी मान्या जाण!
पर जु बचणू चाँदू<ref>चाहता</ref> त मेरी बात सुण्याला,
जै<ref>जिस</ref> चौकी मा बिठाली, वीं मा न तू बैठी।
तब सौली शारदा ली गए वे मौती का भौन।
सेवा मानी सेवा, भाभी मेरी मोतीमाला।
मोतीमाला न उठीक बैठाये बरमी,
बैठीक जिमाये खटरस भोजन।
खिलैक पिलैक तब वा बोलण लैग-
सुण्याल बरमी जरा पांसुड़ी<ref>पाँसा</ref> खेल्याल।
गाडीन वींन चाँदी का चौपड़, सोना की पाँसुड़ी!
अपणी चौकी गाडे<ref>निकाली</ref> वींन<ref>उसने</ref>, बैठी गए,
बैठैयाले बरमी हैका<ref>दूसरी</ref> चौकी पर।
तब लाडलो बरमी पाँसा दऊ<ref>दाँव</ref> देन्द-
पैला दऊ हारिगे बरमी, रघुकुँठी घोड़ी,

तब हारीन बरमीन कानू का कुण्डल,
तब हारीन बरमीन हाथू का मणिबंध।
हाथू का मणिबंध, गात का बस्तर।
तब छूटिगे बरमी, खाली मास-पिंड।
माता की बोलीं तब याद औंदी।
कैं घड़ी माँ पैटी<ref>चला</ref> हालू मैं ये हिंवंचल काँठा,
प्रभु ई विपत से मैं आज कू बचालू?
याद आये तबारी शारदा बोलीं,
बोले बरमीनः भाभी मैं तीस लैगे।
जादू मेरी सौंली पाणी लौ-मोतीन बोले
तब मुँडली<ref>सिर</ref> ढगड्योंद<ref>हिलाया</ref> लाडलो बरमी,
तू पिलौ भाभी अपणा हाथ पाणी,
चेली<ref>दासी</ref> को लायू<ref>एक पेड़</ref> पाणी मैं नी पेन्दो।
तब जाँदी मोतीमाला पाणी पन्यारी<ref>पनघट, सोत</ref>,
लाडला बरमी क पाणी लौंदी<ref>लाती</ref> बाँज<ref>एक पेड़</ref> को जड्यों<ref>जड़</ref> कू।
बरमीन हार चौकी छोड़े, मोती की चौकी बैठे।
मोतीमाला लौटीक देखदी-
मेरी चौकी छोड़ बरमी, पाणी पे तू!
जगा उठा की होण या बैठा की?
मैन तब पेण पाणी, जब पांसू खेल्यान।
बबराँदी<ref>बड़बड़ाती</ref> छ ककलाँदी<ref>बुड़बुड़ाती</ref> मोतीमाला,
मड़ो<ref>मुर्दा</ref> मन्यान<ref>मरे</ref> तेरो जैन धोका करे।
खेलण बेठीन दुई फेर पाँसुड़ी-
बरमीन पैला दाऊ जीतले रघुकुण्ठी घोड़ी,
कानू का कुण्डल जीतेन, तब हाथू का मणिबंध।
विजोरिया हँसुली जीती, झंझरियाली बेसर,
सोवन पाँसुड़ी जीतीले, चाँदी की चौकी।

शब्दार्थ
<references/>