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भक्ति चेतावनी / शब्द प्रकाश / धरनीदास

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कौल करार विसारत हो, कित लागत बात वरावरु रे।
मालिक नाम गयंदहि छोड़ि, बखानत पाट पटम्बरु रे॥
संपति है वन संपति ढेरु, कहो कोउ लेइ गयो वपुरे।
धरनी नर-देह कहाफल जो, नहि जानु अलाह अकब्बरु रे॥11॥