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भगवान सोने जा रहे / सुभाष राय

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धीम...धीम...धित्तान
धीम...धीम...धित्तान
सधे हुए स्वरों में संगीत
गूँज रहा था मन्दिर प्राँगण में
वशीकर, मोहक और उत्तेजक

स्वत: स्फूर्त भर रहा था
कुछ ही पल में झूमने लगा
मेरा माथ, फिर समूची देह

भगवान सोने जा रहे थे
वे थक जाते हैं पूरे दिन
देखते-देखते लोगों की पीड़ा
सुनते-सुनते रुदन, निवेदन

उन्होंने तय कर रखा है कि
जो कुछ भी होगा, होने देंगे
अन्याय, दुख, वेदना, छल, पाखण्ड
देखेंगे चुपचाप, बिना हँसे, बिना रोए
दखल नहीं देंगे कहीं, किसी पल
लगातार देखना, सुनना
बिना विचलित हुए
क्या कम मुश्किल है

कोई भूखा है, कोई बीमार
कोई ईर्ष्या से भरा हुआ
कोई क्रोध से, काम से
कोई नि:सन्तान, पापी, पाखण्डी, लोभी
अनहद महत्वाकाँक्षाओं के साथ
आए हैं हज़ारों-हज़ार लोग
किसी को रस्ते से हटाना है
किसी को शिखर से गिराना है
किसी को मुक़दमे में फँसाना है

भगवान किसे वर दें, किसे न दें
पक्षपात करना सम्भव नहीं
इसलिए ले ली जाती हैं सबकी अर्जियाँ
फ़ाइलें बनवा दीं जाती हैं सबकी
विश्वास रखो, इन्तज़ार करो
जिसने जैसा किया है, फल मिलेगा
इस जन्म में या उस जन्म में

भगवान भी थक जाते होंगे
काम करते-करते, नींद आती होगी
वे नियम-कानून के, टाइम के पाबन्द हैं
अपने स्वास्थ्य का ध्यान रखते हैं
समय से खाते हैं, पीते हैं, सो जाते हैं

संगीत बज रहा था गर्भगृह में
वहाँ मौजूद लोगों के दिमागों में

तमाम लोग देखने आए थे भगवान का शयन
वे पक्का कर लेना चाहते थे कि भगवान सो गए
उन्हें बहुत काम था
भगवान जितनी देर सोए रहेंगे
उनके लिए उतना ही मुफ़ीद होगा
जब भगवान जगे हों
भक्त कोई भी ग़लत काम नहीं करता
पर उन्हें भी पूरा यक़ीन नहीं था
कि भगवान सोते हैं या नहीं
या सोए ही रहते हैं अहर्निश

भक्त वर्षों से आ रहे हैं
भगवान को नहलाने, धुलाने
भोग कराने, जगाने-सुलाने
कभी भगवान ने उनसे नहीं कहा
यार, आज मैं ख़ुद खा-पी लूँगा
तुम आज मेरे लिए कुछ न करो

जब कभी भगदड़ हुई, लोग कुचल कर मरे
तब भी उन्होंने भक्तों को आगाह नहीं किया
कि सीढ़ियों पर सम्भल कर चलो, भीड़ न लगाओ
वे टूट सकतीं हैं वज़न बढ़ने पर
अफ़वाह उड़ाने वालों को भी कभी न रोका, न टोका
लाशों के पास उनके बचे हुए सगे-सम्बन्धी
जब रो रहे थे दहाड़ मार कर
तब भी भगवान को कोई दु:ख नहीं था
वहाँ कुछ लोग भीख माँग रहे थे
उन्हें भरोसा था कि भगवान उनके लिए
कुछ न कुछ ज़रूर करेगा
कई तो इसी विश्वास के साथ
भीख माँगते-माँगते मर चुके थे
कुछ पाकेटमार भी थे
भीड़ में शामिल, चुपचाप और सजग
वे जानते थे कि भगवान समदर्शी है
उन पर भी कृपा करेगा ही
पीली धोती बाँध, जनेऊ धरे, चुटियावान
बहुत सारे दूत घूम रहे थे चारों ओर
उनके पास तो सीधे भगवान तक
पहुँचाने का टिकट था...
साक्षात दर्शन कराऊँगा
महामहिम के सामने ले जाऊँगा
उनके हाथ में अर्ज़ी दिलवाऊँगा
सोचिए मत, सोचने से
बनते काम बिगड़ जाते हैं
फ़ैसला कीजिए, जो मन हो दीजिएगा
भाग्य से ही द्वार खुलता है
आप आए नहीं हैं, भगवान ने आप को बुलाया है

वहाँ नर्मदा भी थीं
रौंदी जाती हुई असंख्य नौकाओं की
घरघराती यन्त्र चरखियों से
दम फूल रहा था उनका
मोटरों से निकलते काले धुएँ से
भक्त उनका पेट फाड़ देने को तत्पर थे
बेल-पत्र, फूल-फल, दीप, नैवेद्य समेत
पूजा का सारा कचरा
उनके पवित्र जल में फेंकते हुए

वे थर-थर काँप रहीं थीं
उनके शरीर से दुर्गन्ध आ रही थी
उनकी चीख़ कहीं उनके गले में अटक गई थी
उनका निर्मल स्फटिक जैसा तन
झुलस कर काला पड़ गया था
उनका सीना चीरती हुई दिन भर
दौड़ रहीं थीं यन्त्र चालित निर्मम नौकाएँ

भगवान तक नहीं पहुँच रही थी नदी की वेदना
उन्हें गर्भगृह में क़ैद कर लिया गया था
या उन्होंने ख़ुद ही चुना था बन्दी की तरह जीना
वे प्रशस्ति वाचकों से घिरे थे

किसी ने नहीं देखा कभी भगवान को
उनकी नींद हराम करने वाले चोरों, उचक्कों
पण्डों और भक्तों को डपटते हुए
सब जानते थे कि जब तक भगवान है
उन्हें कुछ भी करने की छूट है

बहुत भीड़ है भगवान के दरबार में
टिकट लगा है, आइ० डी० माँगी जा रही है
डर है बाहर के लोगों से
उनसे नहीं जो पुराना पाप धोने आए हैं
ताकि अनाचार का नया खाता खोल सकें
उनसे नहीं जो पण्डे को एक नोट थमाकर
पंक्ति से आगे आ गए हैं
उनसे नहीं जो आरती की
थाली में पैसे जमा कर रहे हैं
उनसे भी नहीं जो खुल्लम-खुल्ला जेब
काट रहे हैं भगवान के नाम पर

मैंने उस दिन भगवान को बहुत पुकारा
उँगली के इशारे से बताया
कितने ठग, कितने वंचक हैं उनके आजू-बाज़ू
मैंने बताया कि तुम्हारा डमरू बिक रहा है बाज़ार में
तुम्हारे त्रिशूल को इस्तेमाल कर रहे हत्यारे
तुम्हारी जटाओं से निकली गंगा
सूख गई है, गन्दी हो गई है
तुम्हारी तीसरी आँख से भर गया है कीचड़
बिना गरल पिए ही होश खो चुके हो तुम

मैंने पूछा कई बार, क्या कर रहे हो
कुछ तो बोलो, तुम क्यों हो
पर कोई आवाज़ नहीं आई
जो कुछ करता है, ज़िन्दा रहता है
जो कुछ नहीं करता, मर जाता है

मैंने बार-बार मिन्नत की सोना मत
पर वह फिर सो गया
शायद सोया ही था वह
शायद जागा ही नहीं वह
अपनी प्रथम कल्पना के बाद से

संगीत तेज़ हो गया था, सब झूम रहे थे
मैं संगीत में डूबने लगा, सब के सब डूबने लगे
धीम-धीम धित्तान, धीम-धीम धित्तान