भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भज ले हरि को, नाम रे मन तु / निमाड़ी

Kavita Kosh से
Mani Gupta (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:29, 19 अप्रैल 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKLokRachna |रचनाकार=अज्ञात }} {{KKLokGeetBhaashaSoochi |भाषा=निमाड़ी }...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

    भज ले हरि को, नाम रे मन तु

(१) बाल पणो तुन खेल म गमायो,
    ज्वानी म तीरीया का साथ
    काम रे धंदा म वा भी गमाई
    नई लियो राम को नाम...
    रे मन तु...

(२) आयो हो बुड़ापो न लग्यो हो कुड़ापो,
    डोलन लाग्यो सारो
    शरीर आखं सी सुझतो नही रे
    पड़यो पलंग का माही...
    रे मन तु...

(३) राम नाम को घट म हो राखो,
    राखो दिन और रात
    मुक्ति होय थारी आखरी घड़ी रे
    भेज वैकुन्ठ धाम...
    रे मन तु...

(४) कहत कबीरा सुणो भाई साधू,
    घट म राखो राम
    मनुष जलम काई भाव मिल्यो रे
    नई मिल अयसो धाम...
    रे मन तु...