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भरथरी लोक-गाथा - भाग 8 / छत्तीसगढ़ी

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   ♦   रचनाकार: अज्ञात

जोग ल गुरु मय साधिहॅव
मया छोडिहॅव राम
अइसे ग बानी ल बोलत हे
जोग ल गुरु साधिहॅव
नई तो मया म जॉव
अइसे बानी राजा बोलत हे
गुरु बोलत हे राम
देखतो बानी ल न
चुटकी मारत हे ओ
मोर लानत हे न
गेरुआ कपड़ा
भरथरी ल ओ
दाई देवत हे न
बानी बोलत हे न
ए दे भिक्षा माँगे चले जाबे गा, चले जाबे गा, भाई ये दे जी।

रंगमहल म भीख ल
माँगी लाबे लला
चेकर पाछू धुनि देहँव
धुनि देहँव तोला
तिलक करिहॅव बेटा
नाम ले लेबे न गोरखनाथ के ओ
ये दे अइसे बानी राजा बोलय ओ, गुरु बोलय ओ, भाई ये दे जी।

गरके माला ल देवत हे
भरथरी ये ओ
देखतो दीदी मोर चेला ल
मोर सर के सरताज
गुरु देवय दीदी
राजा भरय आवाज
मोर राजे अऊ पाठे ल छोड़य ओ, ये दे छोड़य ओ, भाई ये दे जी।

का तो गेरुआ रंग के
कपड़ा ल पहिर के राम
भिक्षा माँगे चले जावत हे
रानी कमंडल ओ
चिमटा ल धरे
भरथरी ये न
मोर मगन होके राम
गुरु गोरख के
नाम गावत दाई
रेंगना रेंगय ना
चले जावय हीरा
मोर आनन्द मंगल गावय ओ, बाई गावय ओ, भाई ये दे जी।

ये रामा, ये रामा, ये रामा, ये रामा, ये रामा ओ
भरथरी हर ओ आनंद मंगल गाई के
कइसे जावत हे
गेरुआ कपड़ा, हाथ म चिमटा धरे हे
नाचत-नाचत दीदी
रंगमहल बर आवत हे रामा ये दे जी
गांव के पनिहारिन
जेला देखत हें
गांव के जमों पनिहारिन
पानी भरे ल ओ
देखतो गये हावय कुआँ म
भरथरी ल ओ
देखत हें पनिहारिन
मुंड के गघरा मुंह म बैरी रे रहिगे
मुड़ियाये हें ओ
माड़ी के हँवला माड़ी म रहिगे
बाल्टी डारे हें ओ
रस्सी तिरैया ह तिरत हे
मोहनी अब राम देखती ये दे का मोहाये, राम ये दे जी।

जऊने समय के बेरा म
भरथरी हर ओ
भिक्षा माँगे महल मँ जावय
डंका पारत हे नाम गुरु गोरखनाथ के
बानी सुनत हे ओ
रंगमहल के रानी
चेरिया ल बलाय
सुनले भगवान मोर बात ल
भीख मांगे ल ओ
देखतो आय कोन अँगना मँ
भीख ले जा चम्पा
हीरा मोती अऊ जवाहर
मोर भेजत हे ओ
धरके चम्पा चले का आवय, रामा ये दे जी।

थारी म मोहर धरिके
चले आवत हे राम
जेला देखत हावय भरथरी
भिक्षा ले ले जोगी
अइसे बानी चम्पा का बोलय
सुनले चम्पा मोर बात
तोर हाथे भीख ओ मय तो नई लेवॅव
भिक्षा देवा दे तय रानी सो
अइसे बोलत हे बात
अतका सुनत हावय चम्पा हर
मन म सोचत हे बात
का कहँव राजा जस लागत हे, भाई ये दे जी।

मोरे राजा कस लागत हे
भरथरी कस ओ
मुहरन दीदी ओ का करय
मन म करत हे ओ
ये दे न विचार ल करिके
भरथरी ये ओ
कइसे बइरी मुसकी धरय
मुसकावत हे राम
हीरा कस दांत झलक जावय
चम्पा देखत हे ओ
मोहर ल धरके दौरत जावय
रानी मेर आके राम
सुन तो रानी
कहिके का बोलय
जोगी बनि के घर में आय हवय, भरथरी ये ओ, भाई ये दे जी।

जोगी के रुप म आय हे
सुनिले रानी मोर बात
नोहय जोगी ओ तो राजा ये
भरथरी कस ओ
अइसे दिखत हावय
सुन रानी
बानी सुन के राम
का तो बोलत हावय रानी हर
सुनिले चम्पा मोर बात
झन कहिबे झूठ लबारी ल
कुआं देहव खनाय
जेमा गड़ा देहँव न चम्पा
सामदेई ओ अइसे बानी ल हीरा का बोलय, रामा ये दे जी।

ये रामा, ये रामा, ये रामा ये, रामा ये रामा हो
बोली सुनिके
देख तो दीदी
सामदेहई ह ओ
थारी म मोहर धरे हे
चले आवय दीदी
सुन्दर बानी ल बोलत हे
सुनले जोगी मोर बात भीख माँगे तु आये, ले आय हो, रामा ये दे जी।

अतका बानी ल राजा सुनत हे
भरथरी न ओ
दे दे कइना मोला भीखे ल
माँगत हावॅव दाई
देख दाँत ओ
झलक जावय
मोहनी सही ओ
दिखत हावे भरथरी ह
सामदेई ये ओ
चिन डारय दाई
मुँह ल देखत हे राम, सुनले राजा मोर बात ल, रामा ये दे जी।

आनंद बधाई मना लेवा
सुनले राजा मोर बात
रंगमहल ल झन छोड़व
नव खण्ड ए ओ
नौ लाख नौ कोरी देवता हे
भरे दरबार ये
जिहां ल छोड़े राजा
जोगी बनेव
का तो करँव उपाय
जोगी के भेख राजा का धरेव
झनि धरव राजा
रंगमहल मँ आनन्द करव
अइसे बानी बोलत हे ओ देखतो कइना दाई सामदेई, रामा ये दे जी।

ना तो हरके बइरी मानत हे
भरथरी ये राम
बरजे बात ल दाई नई मानत
सुनले रानी मोर बात
भिक्षा माँगे ल चले आये हँव
भीख ल दे देवा वो
अइसे बानी ल रानी बोलत हे
सुनले राजा मोर बात
भीख तो मे बइरी नई देवॅव
घर के नारी अब तो
सुनले राजा मोर बात ल
बानी सुनत हे ओ
देखतो दीदी भरथरी ह
नई तो मानॅव कइना
कइसे बनी ल राजा का बोलय, रामा ये दे जी।

नई तो मानत हावय
हरके अऊ बरजे बात ल
कइना नई तो मानय
भीख नई देवय राम
लौट जोगी चले जावत हे
गोरखपुर म ओ
गोरखनाथ गुरु ल का बोलय
सुनले गुरु मोर बात
बाते ल मोर थोरकुन सुन लेवा
भिक्षा माँगेव गुरु
भिक्षा बइरी नई तो देइस हे
घर के नारी ये गा
का धन करँव उपाय ल
अइसे बोलत हे राम
बोली सुनत हावय गुरु ये
बानी का बोलय ओ
का कर डारव उपाय ल
चुटकी मारत हे राम देख तो गुरु गोरखनाथ, रामा ये दे जी।

चुटकी बइरी ल मार के
जेला सुनथे दाई ओ
का करिके उपाय ल ओ
मॅय ह कहॅव बेटा
ना ता तोला मॅय रांखव
भिक्षा ले आवा रे
तेखर पाछू चेला मानॅव
अइसे बोलत हे ना
गुरु गोरखनाथ हर
बेटा कहिके तोला जऊन देखय
मया देहय रे
भीख ले आबे न सुनले राजा भरथरी, भाई ये दे जी।

कलपी-कलप राजा रोवत हे
भरथरी ये ओ
नई तो बइरी चोला के ये उबारे ये राम
अइसे बानी ल राजा बोलत हे
मय तो रुखे ल ओ
ये दे लगाय बबूर के
आमा कहां ले होय
का धन करव उपाय ल, बइरी ये दे जी।

सुनले गुरु मोर बात ल
प्रान देहॅव मॅय
नई तो राखव मोला चेला जी
क्षतरी के बानी जनम लिहेंव
जीव ल दे देंहव
राम अइसे बानीं बोलय भरथरी ह
बाई बोलय ओ, रामा ये दे जी।

चुटकी बजावत हे गुरु
बानी बोलत हे दाई ओ
सुनले राजा भरथरी ग
चिमटा देवत हॅव आव
पाचे पिताम्बर गोदरी
टोपी रतन जटाय
जेला लगालय भरथरी
चले जाहव बेटा
राज उज्जैन शहर म
भिक्षा ले आहा ग
मांग लेबे भिक्षा सामदेई सो
बेटा कहिके तोला
जऊने समय भीख देहय न
चेला लेहँव बनाय
अइसे बोलत हावय गुरु
गोरखनाथ ये ओ, बानी ल सुनत हे राजा ह, भाई ये दे जी।