भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भालू के बाल / बालकृष्ण गर्ग

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:11, 22 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गरमी में जब चलती लू,
होता परेशान भालू।
शीतलहर का हो झोंका,
मिले फाइदा बालों का।

गिरे बर्फ, हो भारी शीत,
बालों से रहती है ‘हीट’।
जाड़े में मिलती राहत,
पर गरमी में तो आफत।
       [रचना: 22 जून 1998]