भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भीड़ / महेश सन्तुष्ट

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:00, 25 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेश सन्तुष्ट }} {{KKCatKavita}} <poem> आदमी ने अकेलेपन में आत…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आदमी ने
अकेलेपन में
आत्महत्या से बड़ा
कोई अपराध नहीं किया

और
भीड़ ने
विश्व युद्ध से भी ज्यादा
लोगों को कुचला है।

मूल राजस्थानी से अनुवाद : दीनदयाल शर्मा