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भीतर तै जी भर भर आवै डाटे ना डटते आँसू रै / विरेन सांवङिया

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भीतर तै जी भर भर आवै डाटे ना डटते आँसू रै।
खेत छान मै पङा ऐकला रोऊँ तै कदे धाँसू रै॥

याद करूँ वो टेम रै जिस दिन कर्जा भारी ठाया था।
बैंक मै जा क खेता उपर कृषि लोन कढाया था।
पिसां खातर सेठां धोरै बहू की टूम धराया था।
अपणे ना का आंख लिखा के बही मै गूठा लाया था।
आज भरदी झोली कर्जे नै किमे रो रो दुखः पांसू रै॥

खाद यूरिया महँगी थी पर मनै घर की कूरङी ठाई थी।
भर भर बग्गी सारे खेत मै अपणे हाथां फलाई थी।
खास नशल के बिज बोए और रातू करी सिंचाई थी।
इस बार की खेती गेल्या मनै जीवन आशा लाई थी।
बेरूत की या बारीश बरसी हट हट कै मेरी सासू रै॥

तावल कर मनै करी लामणी कुछ कुछ दाणा रहरा था।
थोङे भोत तो छोड दिए नू भीतर तै जी कहरा था।
एक बिङी पी कै सींक गेरगा फेर सब लपटां मैं बहरा था।
पल भर मै सब राख होया मेरै लाग्या सदमा गहरा था।
आग झूलसगी गात मेरा मैं ईब काँए जोगा ना सू रै॥

न्यार फूस भी छोड्या ना रै मेरे बैल गऊ के जायां का।
चालण तै पहला तोङ दिया मेरा सत बालक के पायां का।
वे आँसू गेरैं ब्हाण मेरी जब टूटा रिश्ता ब्याह्यां का।
नू दुखपाया मैं स्प्रे पीग्या सफर छोड सब राह्याँ का।
सांवङिया इब तू ऐ बता नू कद तक गेरूं आँसू रै॥